Tuesday 11 November 2014

छत्तीसगढ़ नसबंदीः डॉक्टरी लापरवाही- मरने वालों की संख्या 13 हुई | स्थानीय स्वास्थ्य कर्मियों ने शिविर में जाने के लिए महिलाओं को किया बाध्य , ‘भेड़-बकरियों की तरह ढकेलते हुए ले गए उन्हें’

छत्तीसगढ़ नसबंदीः डॉक्टरी लापरवाही- मरने वालों की संख्या 13 हुई 

स्थानीय स्वास्थ्य कर्मियों ने शिविर में जाने के लिए महिलाओं को किया बाध्य , ‘भेड़-बकरियों की तरह ढकेलते हुए ले गए उन्हें’



12 nov

छत्तीसगढ़ नसबंदी, महिलाएं

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में नसबंदी चिकित्सा शिविर में महिलाओं की मौत की संख्या बढ़कर 13 हो गई है.
बिलासपुर शहर के चार अस्पतालों में भर्ती 60 से अधिक महिलाओं में से कम से कम 20 की हालत अब भी चिंताजनक है.
शनिवार को बिलासपुर के पेंडारी में सरकारी चिकित्सा शिविर में 83 महिलाओं की नसबंदी के बाद हालत खराब हो गई थी. इसके बाद से ही महिलाओं की मौत का सिलसिला जारी है.
नसबंदी में हुई मौत के सिलसिले में राज्य सरकार ने न केवल चार डॉक्टरों को निलंबित कर दिया है बल्कि उनके खिलाफ आपराधिक मामला भी दर्ज करने के आदेश दिए गए हैं.
राज्य के स्वास्थ्य सचिव डॉक्टर कमलप्रीत सिंह को पद से हटाया गया है और मुख्यमंत्री ने पीड़ित परिवारों को चार-चार लाख रुपए का मुआवज़ा देने की घोषणा की है.

छत्तीसगढ़ बंद

छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉक्टर लाखन सिंह ने महिलाओं की मौत की संख्या और बढ़ने की आशंका से इनकार नहीं किया है.

छत्तीसगढ़ नसबंदी
उन्होंने कहा, "हम दिन-रात महिलाओं को बेहतर से बेहतर इलाज उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहे हैं. पूरा मेडिकल स्टाफ़ इसमें जुटा हुआ है."
इधर राज्य में विपक्षी दल कांग्रेस ने बुधवार को छत्तीसगढ़ बंद का आह्वान किया है, जिसे राज्य के चेंबर ऑफ कामर्स समेत दूसरी संस्थाओं ने भी समर्थन दिया है.
बंद का असर बिलासपुर शहर में नज़र आ रहा है. स्कूलों में अघोषित छुट्टियां नज़र आ रही हैं. आंशिक तौर पर परिवहन सेवा भी प्रभावित हुई है.

आंखों-देखी

छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान के आईसीयू में जिन पांच महिलाओं का इलाज चल रहा है वे होश में हैं और उनकी हालत स्थिर है.
लेकिन जब वे यहां लाई गई थीं तब उन्हें लगातार उल्टी और निम्न रक्तचाप की शिकायत थी.
हालांकि डॉक्टर बताते हैं कि सभी महिलाओं की हालत में लगातार उतार-चढ़ाव जारी है, इसलिए ये कहना मुश्किल है कि वे फिलहाल खतरे से बाहर हैं. उनकी उम्र 20 से 35 साल के बीच है.

छह घंटे में 83 ऑपरेशन


छत्तीसगढ़ नसबंदी
आईसीयू में भर्ती पांच महिलाओं में से एक 26 साल की रीति सिरवास है. उनके तीन बच्चे हैं.
रीति ने बताया, "ऑपरेशन में केवल पांच मिनट लगे. मुझे कोई तकलीफ नहीं हुई. बाद में दवाएं भी मिलीं. लेकिन जब घर जाने लगी तो उल्टियां शुरू हो गईं."
डॉक्टरों के मुताबिक महिलाओं की नसबंदी के लिए उनका 'लेप्रोस्कोपिक ट्यूबेक्टोमी' ऑपरेशन किया गया. वे बताते हैं कि इसमें केवल चंद मिनट लगते हैं, लेकिन ऑपरेशन के पहले मरीज को तैयार करने और ऑपरेशन के बाद उसकी बेहोशी पर नजर रखने में कम से कम 25 मिनट लग जाते हैं.
छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ के मेडिकल सुपरिटेंडेंट रमेश मूर्ति ने नियमों की जानकारी देते हुए बताया कि एक दिन में एक डॉक्टर नसबंदी के केवल 35 ऑपरेशन ही कर सकता है.
जबकि नसबंदी के नियम के विपरीत आरोप है कि एक डॉक्टर ने मात्र छह घंटे में 83 महिलाओं की नसबंदी कर डाली.

मौत की जिम्मेवारी


छत्तीसगढ़ नसबंदी
नसबंदी मौत मामले में कांग्रेस ने बंद बुलाया है.
दूसरी ओर राज्य के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल ने दोहराया है कि वे नैतिक रूप से इस घटना के लिए ज़िम्मेवार हैं और सीधे तौर पर ज़िम्मेवार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई है और आपराधिक मामला दर्ज किया गया है.
अमर अग्रवाल ने कहा, “ हम किसी को भी नहीं छोड़ेंगे. संकट की इस घड़ी में कांग्रेस बजाए पीड़ितों के दुख-दर्द दूर करने में सहयोग करने के, लाशों पर राजनीति कर रही है. आज का छत्तीसगढ़ बंद इसी का नमूना है और जनता ने इसे ख़ारिज कर दिया है.”
दूसरी ओर राज्य में नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव ने कहा है कि स्वास्थ्य मंत्री अगर ज़िम्मेवारी ले रहे हैं तो उन्हें इस्तीफा भी देना ही होगा.

छत्तीसगढ़ नसबंदी मामला: ‘भेड़-बकरियों की तरह ढकेलते हुए ले गए उन्हें’

Chhattisgarh sterilisation tragedy
डॉक्टरी लापरवाही की शिकार बनी महिलाओं के परिजनों ने बातचीत में साफ तौर पर कहा कि स्थानीय स्वास्थ्य कर्मियों ने शिविर में जाने के लिए महिलाओं को किया बाध्य

बिलासपुर। बिलासपुर में नसबंदी शिविर से कुछ दिन पहले नेम बाई ने एक बच्चे को जन्म दिया था। उसका परिवार नहीं चाहता था कि वह ऑपरेशन कराए। लेकिन स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ता के दबाव के आगे वह मजबूर हो गई और ऑपरेशन के बाद अब वह इस दुनिया में नहीं है।
चंदाकली पुणे में अपमे पति के साथ मजूरी करती थी। वह यहां अपने घर आई थी। घर वाले नहीं चाहते थे कि वह नसबंदी कराए। लेकिन बाद में वे राजी हो गए। ये दोनों उन ग्यारह बदनसीब महिलाओं में हैं, जिनकी नसबंदी ऑपरेशन के कारण अब तक मौत हो चुकी है। हालांकि वे कभी नहीं चाहती थीं कि वे यह ऑपरेशन कराएं। इनके अलावा कई अन्य महिलाएं, जो चिकित्सकीय लिहाज से ऑपरेशन के लायक नहीं थीं, अब भी मौत और जिंदगी के बीच झूल रही हैं। इस समय पचास महिलाएं ऑपरेशन के कारण अस्पताल में दाखिल हैं।
मंगलवार को चंदाकली की बेटियां सत्यवती और सरस्वती छत्तीसगढ़ के अस्पताल के शवगृह के बाहर बैठी अपनी मां की पार्थिव देह का इंतजार कर रही थीं। चंदाकली का पति पुणे से चल पड़ा था।
हालांकि छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल ने इस बात से इनकार किया कि नसबंदी ऑपरेशन के लिए इन महिलाओं को प्रलोभन दिया गया। लेकिन डॉक्टरी लापरवाही की शिकार बनी महिलाओं के परिजनों ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में साफ तौर पर कहा कि स्थानीय स्वास्थ्य कर्मियों ने शिविर में जाने के लिए महिलाओं को बाध्य किया। हर महिला को नसबंदी के लिए 600 रुपए दिए जाने थे। स्वास्थ्य कर्मी को प्रति महिला के हिसाब के हिसाब से डेढ़ सौ रुपए मिलते हैं। सर्जन को 75 रुपए और एनस्थीसिया देने वाले को प्रति ऑपरेशन 25 रुपए मिलते हैं। अगर कोई एनस्थीसिया वाला नहीं आता तो पूरा पैसा सर्जन की जेब में जाता है।
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नेम बाई के देवर महेश सूर्यवंशी ने बताया कि उसे बिना हमसे पूछे ले गए। हमने बार-बार कहा कि उसने हाल में बच्चे को जन्म दिया है। लेकिन उन्होंने कुछ नहीं सुनी। बोले-कुछ नहीं होगा। छोटा-सा ऑपरेशन है। भेड़-बकरियों की तरह ढकेलते हुए उन्हें ले गए।
नेम बाई का परिवार बिलासपुर के भराड़ी गांव में रहता है। महेश ने बताया कि जिस समय वे लोग उसे ले गए, उसकी तबीयत ठीक नहीं थी। जब वह लौटी तो उसकी हालत और बिगड़ चुकी थी।
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लोगों ने बताया कि आॅपरेशन के लिए जिन महिलाओं को ले जाया गया, उनमें से कई की सेहत ठीक नहीं थी। कुछ को शुगर की बीमारी थी। कुछ को दमा था और कुछ दिल की मरीज थीं। चिकित्सा के किसी कायदे या मापदंड का पालन नहीं किया गया।
हालांकि अभी पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार है और मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भी मौतों का कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया है। उनका कहना है कि रिपोर्ट आने के बाद ही स्थिति साफ हो पाएगी। लेकिन अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया कि पहली नजर में लगता है कि ये महिलाएं शारीरिक कमजोरी के कारण नसबंदी के लायक नहीं थीं और ऑपरेशन के बाद उनकी चिकित्सकीय देखभाल ठीक से नहीं हो पाई।

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