Monday 25 August 2014

UPSC: अजब तमाशा, यूपीएससी की भाषा :::: पढ़िए यूपीएससी 2014 के सर चकरा देने वाले अनुवाद पर रिपोर्ट :::: प्लास्टिक को ‘अघट्य’ लिखा हुआ था। दूध का खट्टा होना को ‘दूध आसकंदन’। टर्माइट (दीमक) को ‘बरूथी’ आदि-आदि। फेहरिस्त बहुत लंबी है।

UPSC: अजब तमाशा, यूपीएससी की भाषा :::: पढ़िए यूपीएससी 2014 के सर चकरा देने वाले अनुवाद पर रिपोर्ट :::: प्लास्टिक को ‘अघट्य’ लिखा हुआ था। दूध का खट्टा होना को ‘दूध आसकंदन’। टर्माइट (दीमक) को ‘बरूथी’ आदि-आदि। फेहरिस्त बहुत लंबी है।
25 AUG 2014
http://ddinews.gov.in/Hindi/Business/Business%20-%20Top%20Story/PublishingImages/bhashadin.jpg
कल्पना कीजिए की कोई ‘इस्पात का पौधा’ हो जिस पर ‘इस्पात फल’ आता हो, अगर यह खोज हो जाए तो पूरी दुनिया में तहलका मच जाएगा! बहरहाल ‘स्टील का पौधा’ शब्द तो खोज लिया गया है पर दुर्भाग्य से यह शब्द किसी वैज्ञानिक ने नहीं बल्कि पिछली दफा यूपीएससी के अनुवादकों ने खोजा था।

शब्दों और सपनों का मूल्य होता है। यूपीएससी परीक्षा आज भी देश के सबसे प्रतिभाशाली बच्चों के लिए देश की सेवा करने का सबसे बड़ा सपना है लेकिन क्या हो, जब इनके लिए परीक्षा-पत्र ही ऐसा बना दिया जाए कि सवाल ही समझ न आए?

देशी भाषाओं के छात्रों का बड़ा मुद्दा था अंग्रेजी सवालों का अनबूझ अनुवाद। इसे लेकर देश भर में आंदोलन हुआ। देश की सबसे बड़ी पंचायत, संसद में मामला उठा। यूपीएससी को अनुवाद पर ध्यान देने के लिए कहा गया लेकिन रविवार को जब छात्रों के सामने पर्चा आया तो पहले की तरह ही प्रश्नों से ज्यादा अनुवाद ने उलझा डाला।

प्लास्टिक को ‘अघट्य’ लिखा हुआ था। दूध का खट्टा होना को ‘दूध आसकंदन’। टर्माइट (दीमक) को ‘बरूथी’ आदि-आदि। फेहरिस्त बहुत लंबी है।

एक अंश था – “सरल और स्पष्ट समाधान है सरकार का खेलपंच (अंपायर का अनुवाद) की तरह होना और प्राइवेट क्षेत्रक का खिलाड़ियों की तरह (प्राइवेट प्लेयर्स का अनुवाद) होना ही सबसे अच्छी तरह कार्य करता है। अनेक उद्योगों में सरकारी स्वामित्व की विरासत है। इसमें सरकार के स्वामी (ओवनरशिप का अनुवाद) होने और नियामक होने के बीच हित-द्वंद्व (कन्फ्लिक्ट ऑफ इन्ट्रस्ट का अनुवाद) भी बना रहता है।"

और यह भी है

अंग्रेजी-"Climate change poses potentially devasting effects on india’s agriculture. While the overall parameters of climate change are increasingly accepted." इसका हिंदी अनुवाद-"जलवायु परिवर्तन, भारत की कृषि का संभावित रूप से विध्वंसकारी प्रभाव है। जबकि, जलवायु परिवर्तन के समग्र प्राचल वर्धमानत: स्वीकृत है।"

और ये देखिए

अंग्रेजी-"Some crops may respond favourably to the changing conditions, other may not. this emphaisizes need to promote agriculture research and create maximum flexibility in system to permit adaptations."

और इसका हिंदी तर्ज़ुमा-"कुछ फसलें परिवर्तनशील दशाओं के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दे सकती हैं, दूसरी नहीं भी दे सकती हैं। इससे कृषि अनुसंधान को प्रोत्साहन देने के और प्रणाली में अनुकूलन हो सके इसके लिए। अधिकतम नम्यता बनाने की आवश्यकता पर बल पड़ता है।"

देशी भाषा का छात्र ऐसा अनुवाद पढ़कर उत्तर देना चाहे तो कुछ जवाब गलत होना तय है। अगर वह साथ में अंग्रेज़ी पाठ भी देखे तो समय की कमी से कुछ सवाल छूट ही जाते हैं। यानी अंग्रेज़ी वालों की एक परीक्षा होती है और देशी भाषाओं वालों की दोहरी परीक्षा हो जाती है।

हमने इन शब्दों को गूगल ट्रांसलेट करने की कोशिश की और आश्चर्यजनक रूप से गूगल का अनुवाद इस अनुवाद से कम कठिन है।

छात्रों की मांग रही है कि प्रश्न मूल देशी भाषा के पाठ से पूछे जाने चाहिए, अनुवाद से नहीं क्योंकि अनुवाद जितना भी अच्छा हो, मूल पाठ की बराबरी नहीं कर सकता। अगर यह संभव नहीं है तो क्यों न देशी भाषा के पाठ को मूल माना जाए और अंग्रेज़ी में अनुवाद करके प्रश्न पूछे जाएँ?

एक तर्क है कि देशी भाषाओं के इतने रूप हैं कि अनुवादकों को मानक शब्द ढूंढने में दिक्कत होती है। लेकिन इस तर्क के आधार पर क्या स्टील प्लांट का अनुवाद ‘इस्पात का पौधा’ हो सकता है…? अंग्रेजी के भी इतने रूप हैं- ब्रिटिश, अमेरिकी, ऑस्ट्रेलियन और फिर अमेरिकी और ब्रिटिश अंग्रेज़ी के भी अनगिनत रूप हैं लेकिन फिर भी अंग्रेजी अनुवाद में ये परेशानी नहीं होती। तो क्यों न देशी भाषाओं में परीक्षा-पत्र बनाकर उनका अंग्रेज़ी अनुवाद किया जाए?

अबकि बार अलग बात ये रही कि सारी देशी भाषाओं के छात्र अंग्रेज़ी के वर्चस्व और यूपीएससी द्वारा किए जा रहे इस कथित अन्याय के खिलाफ साथ आ गए। संसद में भी कई सांसद दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इस मुद्दे पर देशी भाषाओं के छात्रों के पक्ष में आए। ऐसे में एक सवाल यह भी है कि अपने सर्वोच्च अधिकारी चुनते वक्त क्या कोई देश अपने बच्चों से ऐसे अनुवाद के द्वारा परीक्षा ले सकता है? इस साल शायद परीक्षा में कम समय होने और परीक्षा न टालने की बाध्यता के चलते समग्र समाधान नहीं हो पाया। लेकिन समाधान तो करना ही होगा।

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