Saturday 12 April 2014

Will BAHUGUNA Surprised Us Again For be Uttarakand CM post?Wait and Watch A great Game for CM Uttarakhnd after 2014 Election!!! :::: बहुगुणा को फिल्म के पार्ट-टू का बेसब्री से इंतजार :::: कांग्रेस की सियासी फिल्म के सीक्वल की तैयारी :::: Harish Rawat Have not Much more time for His CM post After 2014 election !!!

Will BAHUGUNA Surprised Us Again For be Uttarakand CM post?Wait and Watch A great Game for CM Uttarakhnd after 2014 Election!!!

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बहुगुणा को फिल्म के पार्ट-टू का बेसब्री से इंतजार

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कांग्रेस की सियासी फिल्म के सीक्वल की तैयारी

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Harish Rawat Have not Much more time for His CM post After 2014 election !!! 




देहरादून: सियासत भी अजीब है। इसमें न किसी का मकसद पता चलता है न ही इरादे। दांव भी ऐसे चले जाते हैं कि दूसरे को उसकी भनक तक नहीं लगती। दरअसल, जो जिस भूमिका में दिखता है, वो उसमें होता नहीं है। यूं भी सियासत की परिभाषा काफी कुछ बदल चुकी है। अब तगड़ा राजनीतिज्ञ वो माना जाता है जिसकी निगाहें कहीं और हो और निशाना कहीं और। कुछ ऐसा ही सूबे की कांग्रेस में घट रहा है। यहां कहने मात्र को कांग्रेस एकजुट है लेकिन एक-दूसरे को सियासी पटखनी देने में लगे हुये है।
पार्टी के दो दिग्गजों मुख्यमंत्री हरीश रावत व पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के बीच जबरदस्त द्वंद्व चल रहा है। महाराज पार्टी से बाहर होकर भी इस द्वंद्व में शामिल हैं। बहुगुणा अभी भूले नहीं हैं कि हरीश की वजह से ही उन्हें सीएम की कुर्सी गंवानी पड़ी। उन्हें भरोसा है कि लोकसभा चुनाव के बाद हालात बदलेंगे और फिर उनके दिन बहुरेंगे। फिर से उनके सिर ताज सजेगा। यही वजह है कि उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने से साफ इंकार कर दिया। उनके चाहने वाले आजकल सियासी तानाबाना बुन रहे हैं। गुपचुप तरीके से लेकिन रोचक पटकथा लिखी जा रही है। यानी खुद को विधायक की भूमिका तक सीमित रखने वाले बहुगुणा को अभी उत्तराखण्ड की सियासी फिल्म के पार्ट-टू का का इंतजार है।
कांग्र्रेस में खेमेबाजी की जो सियासी फिल्म है उसका समापन सतपाल महाराज की पार्टी से विदाई के रूप में हुआ। फिल्म समाप्त होने से पहले महाराज अप्रत्याशित रूप से भगवा ब्रिगेड में शामिल हो गये। प्रतिक्रियाओं में इस ‘दि एण्ड’ को बेहद गोपनीय व रोचक करार दिया गया। लेकिन, कई ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब फिल्म खत्म होने पर भी लोगों को नहीं मिला। मसलन, महाराज ने भाजपा का दामन थामा लेकिन उनके समर्थक विधायक व कार्यकर्ता अभी तक कांग्रेस में ही क्यों बने हुये हैं। और तो और उनकी धर्मपत्नी अमृता रावत भी उनकी हमराह क्यों नहीं बनी। दूसरा यह कि पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने लोकसभा चुनाव लड़ने से क्यों इंकार कर दिया? जब उनका बेटा चुनाव लड़ सकता था तो वो क्यों नहीं लड़े? वो भी तब जबकि सूबे की पांच लोकसभा सीटों में से उनकी परम्परागत सीट टिहरी पर ही कांग्रेस की स्थिति सबसे मजबूत मानी जा रही है। वैसे भी बहुगुणा ने मुख्यमंत्री रहते हुये टिहरी संसदीय क्षेत्र के लिये कई अभूतपूर्व कार्य किये हैं जिनके बूते वो पूरे अधिकार के साथ जनता से वोट मांग सकते हैं।
सीएम हरीश रावत और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य का आग्रह तो छोड़िये लेकिन बहुगुणा ने पार्टी हाईकमान का आदेश तक मानने से इंकार कर दिया। अंत तक अपने स्टैंड पर कायम रहे बहुगुणा आखिरकार पार्टी को झुकाने में कामयाब हुये और उन्होंने अपने पुत्र साकेत को टिहरी से टिकट दिलवा ही दिया। फिर से असली मुद्दे पर आते हैं। महाराज समर्थक विधायकों का उनके साथ भाजपा में न जाना और बहुगुणा का लोकसभा चुनाव लड़ने से इंकार करना, कांग्रेस की सियासी फिल्म का सीक्वल बनने की ओर इशारा कर रहा है। पार्टी सूत्रों की मानें तो पार्टी के भीतर बिसात बिछायी जा चुकी है। फिल्म की पटकथा न सिर्फ लिखी जा चुकी है बल्कि उसके किरदार और उनकी भूमिका तक तय की जा चुकी है। पार्ट-टू फिल्म का ‘मुहूर्त शॉट’ लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद शुरू होगा। फिल्म में महाराज और बहुगुणा की भूमिका अहम होगी। इसकी जो पटकथा लिखी गई है, उसमें महाराज समर्थक विधायकों का फिलहाल कांग्रेस में रहना और बहुगुणा को विधायक के किरदार में होना जरूरी है। अब तक सबकुछ योजनाबद्ध तरीके से चल रहा है। फिलहाल लोकसभा चुनाव परिणाम का इंतजार कीजिये।

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