Sunday 2 February 2014

मीडिया मोदी का समर्थक क्यों होता जा रहा है? Narendra Modi run away from studio during interview by Karan Thapar

मीडिया मोदी का समर्थक क्यों होता जा रहा है?

Narendra Modi run away from studio during interview by Karan Thapar

 


नरेंद्र मोदी
पिछले हफ़्ते दिल्ली में जब आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने अपने मंत्रिमंडल के मंत्रियों के साथ संसद के पास की सड़क पर धरना दिया था तो उन्हें शुरुआत में मीडिया में ज़बर्दस्त कवरेज मिली.
और मीडिया का रवैया भी पूरी तरह सकारात्मक रहा लेकिन धरना जैसे ही दूसरे दिन में दाखिल हुआ लगभग सारे ही टीवी चैनल अचानक केजरीवाल और उनके धरने के विरोधी हो गए.
मीडिया का विरोध इतना अचानक, सामूहिक और स्पष्ट था कि ख़ुद केजरीवाल ने संवाददाताओं से कहा कि मीडिया को अचानक क्या हो गया.

आम आदमी पार्टी अभी एक साल पहले अस्तित्व में आई है और ख़ुद उसे इस बात का भ्रम या गुमान तक नहीं था कि वह पहले ही चुनाव में दिल्ली में सत्ता में आ जाएगी.
अब वह संसदीय चुनाव के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के उम्मीदवार निर्धारित करने और उससे भी अधिक महत्वपूर्ण घोषणा पत्र या भविष्य का दृष्टिकोण पत्र तैयार करने में व्यस्त है.
इस वक़्त किसी को भी मालूम नहीं है कि आम आदमी पार्टी आगामी चुनाव में क्या भूमिका निभाएगी लेकिन इतना ज़रूर है कि पार्टी ने एक भी नेता और उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे बिना भारत का राजनीतिक परिदृश्य ही बदल दिया है.
इस नई ने पार्टी कांग्रेस और भाजपा से लेकर सभी क्षेत्रीय दलों तक में एक बेचैनी सी पैदा कर दी है.

भारत का मीडिया

मोदी समर्थक
दूसरी ओर भाजपा नेता नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ रही है और प्रधानमंत्री पद के लिए उनका रास्ता दिन प्रतिदिन आसान होता जा रहा है. मोदी के लिए बेहतर अवसरों के लिहाज से अब भारत का मीडिया भी रंग बदलता जा रहा है और लगभग सभी टीवी चैनलों पर समाचारों और विश्लेषणों में अचानक मोदी की ओर झुकाव दिखने लगा है.

कुछ विश्लेषणात्मक रिपोर्टों के अनुसार कई कॉर्पोरेट मालिकों ने अपने चैनलों को स्पष्ट रूप से निर्देश दिया है कि वे मोदी के विरोध से बचें और मोदी विरोधी विश्लेषकों और विशेषज्ञों को चर्चा में कम शामिल करें.
देश की एक प्रमुख पत्रिका ने अपने एक लेख में लिखा है कि पिछले कुछ हफ़्तों में कम से कम पांच प्रमुख संपादकों को तटस्थ रहने या मोदी विरोधी विचारों के कारण उनके पदों से हटा दिया गया है.
यही नहीं टीवी चैनलों पर अचानक ऐसे विश्लेषकों और पर्यवेक्षकों की संख्या बढ़ गई है जो दक्षिणपंथी विचारधारा वाले हैं.
गुजरात दंगों की पृष्ठभूमि में नरेंद्र मोदी अधिकांश अंग्रेजी मीडिया को शक शुबहे की नज़र से देखते रहे हैं. मीडिया के प्रति उनका रवैया बेहद अहंकारपूर्ण और एकतरफा रहा है. वह अभी तक पत्रकारों से बचते रहे हैं और साक्षात्कार केवल उसी पत्रकार को देते हैं जिसे वे चाहते हैं.

राजनीति की बिसात

मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी
साक्षात्कार से पहले वह पत्रकार से सारे सवाल भी मांगते हैं और पत्रकार को यह भी बताया जाता है कि इनमें कौन से सवाल पूछा जाएगा और कौन सा नहीं. भारत के एक प्रमुख पत्रकार ने कुछ साल पहले एक साक्षात्कार के दौरान जब मोदी से गुजरात दंगों के बारे में सवाल किया तो वे बेहद नाराजगी से साक्षात्कार से उठकर चले गए.

watch video: http://youtu.be/QHS_eSoOBzg

Narendra Modi run away from studio during interview by Karan Thapar





इसके बाद किसी भारतीय पत्रकार ने आमतौर उनसे दंगों के बारे सवाल करने का साहस नहीं किया और अब भी भारतीय मीडिया अपने इस रवैये पर कायम है.
भारत के कॉरपोरेट हाउस और बड़े औद्योगिक घराने धार्मिक नरसंहार, जातिवाद, धार्मिक भेदभाव और अन्य महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों पर शायद ही कभी कोई स्टैंड लिया हो और इन मुद्दों पर वे हमेशा ही चुप रहे हैं.
मोदी उन्हें एक खुली अर्थव्यवस्था के वाहक और सुधारवादी नेता नज़र आते हैं.
मोदी का साथ देना इसलिए भी उनके लिए स्वाभाविक है कि वे मौजूदा चुनावी राजनीति की बिसात पर पराजित मोहरों के साथ प्रतिबद्धता दिखा कर कोई जोखिम नहीं लेना चाहेंगे. भारतीय मीडिया भी अचानक इसलिए मोदी के रंग में रंगा जा रहा है.

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