Monday 9 September 2013

ज़रदारी सियासत में न होते तो शतरंज के कास्पारोव होते'

ज़रदारी सियासत में न होते तो शतरंज के कास्पारोव होते'

 सोमवार, 9 सितंबर, 2013 को 12:15 IST तक के समाचार

आसिफ़ अली ज़रदारी, पाकिस्तान
आसिफ़ अली ज़रदारी के बारे में मेरी जितनी भी मालूमात है, वो उनसे गाहे-बगाहे मिलने वाले चंद दोस्तों या मीडिया वालों की ओर से दी जाने वाली चुनिंदा जानकारी से मिली है.
और इस बुनियाद पर जो तस्वीर बनती है, वो ब्लैक एंड व्हाइट नहीं बल्कि ग्रे है. और ग्रे तो आपको मालूम ही है कि काले और सफेद को घोलकर बनता है.
चूंकि हम सभी ग्रे हैं, लिहाजा क्लिक करें आसिफ़ अली ज़रदारी भी हम जैसे ही हैं और अगर उन्हें बेनजीर भुट्टो, पीपल्स पार्टी और राष्ट्रपति पद से अलग करके देखा जाए तो निरे आम से आदमी निकलते हैं.
आप उन्हें पुश्तैनी रूप से सामंती के खाने में भी नहीं रख सकते हैं. आप उन्हें बहुत पढ़ा-लिखा या कोई किताबी कीड़ा या किताब या हिसाब से चलने वाला भी नहीं मान सकते हैं.
वो कोई करिश्माई या भाषाई करतब बाज़ भी नहीं हैं. उनका वैश्विक और सार्वभौमिक विज़न भी बहुत सतही है. अलबत्ता राजनीतिक संयोग और हादसों वाली तालीम ज़रूर है. इसलिए चिर-परिचित राजनेता के खाने में भी वो फिट नहीं दिखाई देते हैं.
अलबत्ता, मौजूदा व्यवस्था की कमजोरी और ताक़त को राजनेताओं की मौजूदा पीढ़ी में शायद ही कोई उनसे बेहतर समझता हो. वो राजनीति में न होते तो शायद शतरंज के गैरी कास्पारोव होते.

'किस्मत के धनी'

आसिफ़ अली ज़रदारी
ज़रदारी को गार्ड ऑफ ऑनर के साथ राष्ट्रपति भवन से विदाई दी गई
आसिफ़ अली ज़रदारी की सोच भी अक्सर देहाती और शहरी इलाकों में तैयार होने वाले उस मध्यवर्ग जैसी लगती है, जो अपनी सामाजिक और आर्थिक स्थिति से कभी संतुष्ट नहीं होता और असुरक्षा की भावना का शिकार होने की वजह से ज़्यादा से ज़्यादा चीज़ें हासिल करने के चक्कर में मानसिक और शारीरिक ऊर्जा खर्च करता रहता है और तनी हुई जीवन की रस्सी पर झूलता रहता है.
कुछ लोग चाहें तो आसिफ़ अली ज़रदारी को किस्मत का धनी कह सकते हैं.
आप कुछ भी कह लें लेकिन इसका क्या करें कि मोहम्मद अली जिन्नाह से लेकर आज तक जितने भी सिविलियन राष्ट्राध्यक्ष आए उनमें फज़ल इलाही चौधरी के बाद ज़रदारी दूसरे निर्वाचित राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने निर्धारित संवैधानिक कार्यकाल पूरा किया. (बल्कि राष्ट्रपति फ़ज़ल इलाही चौधरी तो अपने संवैधानिक कार्यकाल यानी 14 अगस्त 1973 से 13 अगस्त 1978 के बाद एक महीना दो दिन ज़्यादा यानी 16 सितंबर 1978 तक राष्ट्रपति रहे.)
इस लिहाज़ से आसिफ़ अली ज़रदारी पहले राष्ट्रपति हैं जिन्होंने अपने अधिकार किसी जनरल या पिछले दरवाज़े से आने वाले किसी सिविलियन को नहीं सौंपे बल्कि वो एक और निर्वाचित राष्ट्रपति को पद सौंपकर दिन के उजाले में विदा हुए.
ज़रदारी
2007 में एक आत्मघाती हमले में बेनज़ीर भुट्टो की मौत के बाद ज़रदारी ने पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की कमान संभाली
जितनी जेल आसिफ़ अली ज़रदारी ने काटी, उतनी किसी और निर्वाचित पाकिस्तान राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री ने अपनी पूरी राजनीतिक ज़िंदगी में नहीं काटी है.

क्यों ख़ास हैं ज़रदारी

जितने भी फौजी या सिविलियन, निर्वाचित या अनिर्वाचित गवर्नर जनरल या राष्ट्रपति आए, वो अपने अधिकारों से या तो असंतुष्ट रहे या उनमें वृद्धि की कोशिश करते रहे.
आसिफ़ अली ज़रदारी ने जब राष्ट्रपति पद संभाला, तो ये अहम अधिकारों से लैस और ताक़तवर पद था. लेकिन पहली बार किसी राष्ट्रपति ने अपने अधिकार अपनी मर्ज़ी से संसद और प्रधानमंत्री को सौंपे और अपने पद को सिर्फ सांकेतिक राष्ट्राध्यक्ष तक सीमित कर दिया.
यही नहीं, बहुत से संघीय अधिकारियों को प्रांतीय सरकारों को सौंपकर संवैधानिक प्रक्रिया को प्रोत्साहन दिया गया और इस तजुर्बे की क़लम एक ऐसे समाज में लगाई गई है, जहां कोई किसी के लिए दो फुट क्या दो इंज ज़मीन बड़ी मुश्किल से खुशी-खुशी छोड़ने को तैयार होता है.
ममनून हुसैन
ममनून हुसैन पाकिस्तान के नए राष्ट्रपति हैं
ये भी पाकिस्तान में पहली बार हुआ है कि जिस पार्टी का राष्ट्रपति और सरकार हो, वहीं पार्टी चुनावों में इतनी बुरी तरह हार खा जाए कि सिर्फ एक प्रांत तक सिमटकर रह जाए और इस हार का आरोप किसी और के सिर थोपने के बजाय चुनाव परिणामों को स्वीकार कर आगे आने वालों को संवैधानिक प्रक्रिया के अनुरूप बिना किसी चूं-चां के सत्ता भी सौंप दे.

रास्ता भी क्या है

इन पांच सालों में विपक्ष भी आमतौर पर बचपने से लड़कपन में दाखिल होता नज़र आया. सकारात्मक और नकारात्मक, सार्थक और निरर्थक संवाद के बावजूद किसी भी अहम राजनीतिक दल ने व्यवस्था को पटरी से उतारने की जानबूझकर कोशिश नहीं की. इसका फल सिविलयिन से सिविलियन को सत्ता सौंपे जाने के रूप में सबके सामने है.
इसके अलावा पहली बार उपचुनाव में जो भी हार-जीत हुई, वो ख़ालिस सरकारी बदमाशी के बजाय वोट के आधार पर हुई और सबने उपचुनाव के परिणामों को आम चुनावों के मुकाबले ज़्यादा खुशी-खुशी स्वीकार किया.
हिमालय से ऊंची आर्थिक, राजनीतिक, कानूनी और सामाजिक समस्याएं और स्कैंडल जितने कल थे, आज भी उतने ही हैं. शायद आने वाले दिनों में और भी ज़्यादा हो जाएं लेकिन बुनियादी लोकतांत्रिक ढांचे पर अंदर या बाहर से कोई नई चोट न लगे तो जख्मों पर खुरंड आना शुरू हो जाएगा.
वैसे भी आज की तारीख में खुश उम्मीदी के सिवाय रास्ता क्या है!!!

पाकिस्तान: राष्ट्रपति पद से जरदारी की विदाई

आसिफ अली ज़रदारी
ज़रदारी पहले पाकिस्तानी राष्ट्रपति हैं जो अपना संवैधानिक कार्यकाल पूरा कर पाए हैं
पाकिस्तान में राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी का कार्यकाल रविवार को समाप्त हो गया और उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर के साथ राष्ट्रपति भवन से विदा किया गया.
इससे पहले ज़रदारी ने शनिवार को राष्ट्रपति भवन में अपने कर्मचारियों को अपनी तरफ से विदाई भोज दिया.
इस अवसर पर उन्होंने कहा कि वो पूरे सम्मान के साथ अपना संवैधानिक कार्यकाल पूरा होने और पद छोड़ने पर बेहद खुश हैं.
ज़रदारी ने कहा कि उन्होंने सभी फैसले देश के हित में किए और अपने अधिकार संसद को सौंपे.

'नहीं बनूंगा प्रधानमंत्री'

पाकिस्तान के 67 साल के इतिहास में ज़रदारी पहले ऐसे राष्ट्रपति हैं जिन्होंने अपना पांच साल का राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा किया और उनकी जगह एक निर्वाचित राष्ट्रपति पद संभालेंगे.
ममनून हुसैन ज़रदारी का स्थान लेंगे.
"मैं प्रधानमंत्री बनने की कोशिश नहीं करूंगा. मेरे ख्याल से पार्टी चलाना प्रधानमंत्री बनने से ज्यादा महत्वपूर्ण है."
आसिफ अली जरदारी, पाकिस्तानी राष्ट्रपति
बतौर राष्ट्रपति ज़रदारी के कार्यकाल में पाकिस्तान को कई चुनौतियों को सामना करना पड़ा.
इस दौरान जहां पाकिस्तान में चरमपंथी हिंसा बराबर चुनौती बनी रही.
वहीं एबटाबाद शहर में अल कायदा नेता ओसामा बिन लादेन के अमरीकी सैन्य अभियान में मारे जाने के बाद अमरीका और अफगानिस्तान से पाकिस्तान के रिश्ते तनावपूर्ण हुए.
हाल ही में पाकिस्तान में आम चुनाव हुए जिनमें ज़रदारी की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा और पीएमएल (एन) के नेता नवाज शरीफ ने तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला.
जरदारी एक इंटरव्यू में कह चुके हैं, “मैं प्रधानमंत्री बनने की कोशिश नहीं करूंगा. मेरे ख्याल से पार्टी चलाना प्रधानमंत्री बनने से ज्यादा महत्वपूर्ण है.”
राष्ट्रपति पद से हटने के बाद आसिफ अली जरदारी के खिलाफ दर्ज भ्रष्टाचार संबंधी उन मुकदमों के फिर से खुलने की संभावना है जिनमें बतौर राष्ट्रपति उन्हें मिले संवैधानिक संरक्षण के कारण कोई अदालती कार्रवाई नहीं सकी थी.

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