Tuesday 10 September 2013

दहशतः चुपचाप खाली हो रही हैं बस्तियां

दहशतः चुपचाप खाली हो रही हैं बस्तियां

muzaffarnagar riots devoid colonizing

पुलिस है, पीएसी है, पैरा मिलिट्री फोर्स है और अफसरों की फौज भी है लेकिन बागपत के गांवों में फैली दहशत कम होने का नाम नहीं ले रही।

जिस गांव में रात को वारदात हो जाती है, लोग सो नहीं पाते और दिन निकलते ही डरे-सहमे परिवार घर छोड़कर चल देते हैं रिश्तेदारी में।

बस्तियां खाली होने का यह सिलसिला पांच दिन से चल रहा है। मंगलवार को सूप गांव से 100 परिवार भारी मन से चुपचाप गांव से पलायन कर गए।

मुजफ्फरनगर में हिंसा फैलने के बाद बागपत में हुए पलायन पर अगर गौर किया जाए तो यह एक साजिश सी लगती है।

हर गांव की लगभग एक जैसी कहानी है। रात को आठ से बारह बजे के बीच शराब के नशे में धुत 20-25 खुराफाती युवक कहीं न कहीं हमला बोल देते हैं, फिर रातभर गांव दहशत और तनाव में डूबा रहता है।

सूरज निकलने के साथ ही पलायन शुरू हो जाता है। यही लुहारी में हुआ। यही बामनौली में हुआ। छपरौली, शबगा, सिनौली सभी जगह की एक सी कहानी रही। और अब यही सूप में सामने आया है।

यहां रविवार रात एक धर्मस्थल से लौटते लोगों पर हमला हुआ। सुबह को एक समुदाय के लोग अपना-अपना सामान लेकर रिश्तेदारी में चल दिए। जिम्मेदार लोगों ने बहुत समझाया लेकिन उनके दिल में समाया डर नहीं निकला।

बागपत जिले के सूप गांव से ही सटे बासौली गांव में पलायन की एकदम अलग कहानी नजर आई। यहां एक समुदाय के 15-20 परिवार गांव के एक छोर पर रहते हैं।

इतने ही दूसरे छोर पर। एक छोर से पलायन हो गया। दूसरे छोर की लोग कह रहे हैं कि ऐसा अमनचैन कहीं और मिल ही नहीं सकता, इस गांव से जाने का मतलब तो ठीक वैसे ही है, जैसे अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मारना। यहां तो कोई किसी से ऊंची आवाज में भी नहीं बोलता।

उधर, शहर से सटे निवाड़ा गांव में करीब 100 परिवारों ने शरण ली है। ये लोग दूर-दूर से रिश्तेदारी में आए हैं लेकिन इनके आने से कुछ लोग डर गए।

उन्हें लगा कि कहीं उन पर हमला न हो जाए। रही सही कसर अफवाहों ने पूरी कर दी। इसी डर में दो परिवारों ने गांव से पलायन कर दिया।

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