Sunday 22 September 2013

क्या बो शिलाई के पतन पर चीन को अफ़सोस होगा?

क्या बो शिलाई के पतन पर चीन को अफ़सोस होगा?

 सोमवार, 23 सितंबर, 2013 को 07:00 IST तक के समाचार

बो शिलाई
बो शिलाई के पतन के साथ ही 'कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन' ने उनकी पीढ़ी के सबसे प्रतिभाशाली राजनीतिज्ञ को खो दिया है.
यह कुछ-कुछ उसी तरह था जैसे ब्रिटेन में लेबर पार्टी ने टोनी ब्लेयर को 1997 से पहले किनारे कर दिया था जब वे चुनाव जीतने वाले थे या जैसे अमरीका में डेमोक्रेटिक पार्टी ने 1992 में बिल क्लिंटन को छोड़ दिया था. बो का करिश्मा और उनका सियासी कद उन्हें इन हस्तियों की कतार में शुमार करता है.

और क्या अगर वे किसी लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था का हिस्सा होते तो ये मुमकिन था कि वे अपनी पत्नी गू काईलाई और करीबी सहयोगी वांग लिजुन के गलत कामों के ख़ामियाज़े से उबर गए होते.
क्योंकि चीन के जिनान शहर में बो शिलाई पर फ़ैसला सुनाने वाली अदालत का सबसे कड़वा सच यही है कि उनके खिलाफ रत्ती भर भी ऐसा कोई सबूत न था जिससे पत्नी और सहयोगी के अपराधों में उनके शामिल होने की बात सामने उभर कर आती थी.
उनके बारे में सबसे ख़राब बात जो कही जा सकती थी वह यह थी कि वे वफ़ादारों पर आँख मूंदकर भरोसा करने की आदत का शिकार हुए. बो शिलाई का पतन कम्युनिस्ट पार्टी में उनके कई दुश्मनों के लिए खुशी की ख़बर है और इस फ़ैसले ने कई लोगों की ज़िंदगी बना दी है.
साल 2012 के अंत में जब चीन में नेतृत्व परिवर्तन की प्रक्रिया चल रही थी तब तमाम ऊहापोह और नाटकीय अस्थिरता के बावजूद आखिर में खरीदफ़रोख़्त और बाकी मुद्दे आसानी से सुलझ गए थे.

बो की सुनवाई

बो शिलाई पर फैसला सुनाने वाले जज
बदलाव के बाद नए निज़ाम में बो को किनारे करना मुश्किल हो जाता और इतना ही नहीं उन्हें वाजिब जगह देना भी एक अलग चुनौती थी. कुछ लोगों ने ये अटकलें लगाई थीं कि उन्हें 'नेशनल पीपल्स कॉन्ग्रेस' या 'चाइनीज़ पीपल्स पॉलिटिकल कंसल्टेटिव कॉन्फ्रेंस' की कमान सौंपी जा सकती थी.
लेकिन उन्हें सत्ता के महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की कमान जनमत बनाने के लिए सौंपने का ये मतलब था कि उन्हें किनारे करना बेहद मुश्किल हो जाता. बो अपनी पीढ़ी के एक मात्र ऐसे नेता थे जिन्होंने आधुनिक चीन के सत्ता प्रतिष्ठानों के विशेषाधिकार प्राप्त कुलीन घेरे से बाहर निकलने की सच्ची कोशिश की थी और लोगों से सीधे मुखातिब हुए थे.

यही उनकी लोकप्रियता का आधार था और शायद यही वजह थी कि जिनान में बो की सुनवाई के दौरान उनकी आवाज सुनी गई और उन्हें एक निष्क्रिय और घृणित परिवार की धुरी करार देने की कोशिश की गई.
इस बात की संभावना कम ही थी कि लोग बो शिलाई के समर्थन में पार्टी पर दबाव बनाने के लिए पर्याप्त संख्या में सड़कों पर उतरते लेकिन वे बो को बेआवाज जाने भी नहीं दे सकते थे. लोगों ने बो शिलाई की पत्नी गू काईलाई और सुरक्षा प्रमुख वांग लिजुन के बिकाऊपन और गैरज़िम्मेदाराना बर्ताव की आलोचना की.
बो को सज़ा दे दी गई है और डेंग शियापिंग के अपवाद को छोड़ दें तो नेता के तौर पर उनकी वापसी की संभावना बहुत कम ही है. डेंग शियापिंग राजनीतिक वनवास से तीन बार वापस लौट गए थे. अगर मौजूदा निज़ाम जारी रहा और जैसा कि उम्मीद भी है तो बो खामोशी और गुमनामी के अंधेरे में खो जाएंगे.
लेकिन उनकी विरासत को ख़ारिज करना आसान न होगा और न ही उन सवालों को जो उन्होंने सत्ता में रहने के दौरान उठाए या फिर अपने पतन के वक्त.

इंसाफ़

बो शिलाई
आखिर में न तो इंसाफ़ जिनान में हुआ और न ही बो की सज़ा में. कई सवाल अभी भी बाकी हैं. आखिर बो शिलाई की पत्नी गू काईलाई और ब्रितानी कारोबारी हेवुड के हत्या के दावे के बीच क्या संबंध था और सत्ता का किस तरह से दुरूपयोग किया गया या भ्रष्टाचार का वास्तविक स्वरूप क्या था.

बो के मामले की सुनवाई के दौरान एक चीज सबको शुरू से पता थी, पर साफ तौर पर किसी ने भी ये नहीं कहा कि यह आपराधिक नहीं बल्कि राजनीतिक मुद्दों पर अधिक केंद्रित था.
उनकी सज़ा निश्चित रूप से पोलित ब्यूरो की स्टैंडिंग कमेटी की तरफ से मंज़ूर की गई थी और उनकी सुनवाई भी इसी कमेटी की ओर से तय की गई थी.
उनकी वास्तविक सज़ा तात्कालीन प्रमुख वेन जियाबाओ ने पिछले साल मार्च के महीने में ही नेशनल पिपुल्स कॉन्ग्रेस में तय कर दी थी.
नेशनल पीपल्स कॉन्ग्रेस में जियाबाओ के अप्रत्यक्ष हमले ने बो की किस्मत का फ़ैसला कर दिया था और उसी लम्हें से बो एक चलते फिरते मुर्दा आदमी की तरह हो गए थे.
लेकिन बो शिलाई का पतन चीन की राजनीति और कम्युनिस्ट पार्टी के लिए एक बहुत बड़ा नुकसान है. मुमकिन है कि आने वाले सालों में जिनान की उस अदालत के फैसले पर अफ़सोस और पछतावा हो.

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