Monday 9 September 2013

दुनिया को चैलेंज करने ही आया हूँ : इरफ़ान

दुनिया को चैलेंज करने ही आया हूँ : इरफ़ान

 सोमवार, 9 सितंबर, 2013 को 09:34 IST तक के समाचार

इरफ़ान खान, लंच बॉक्स, फ़िल्म, इंटरव्यू, बॉलीवुड
लंच बॅाक्स' में अपने किरदार के पीछे मौजूद आदर्श के बारे में इरफ़ान ख़ान ने बताया.
इरफ़ान ख़ान की फ़िल्म 'लंच बॅाक्स' आपको उस वक़्त की याद दिलाती है जब मोबाइल फ़ोन नहीं होते थे औऱ लोग ख़त लिखकर अपने प्यार का इज़हार किया करते थे.
बॅालीवुड में अपनी अलग छवि रखने वाले इरफ़ान ने बीबीसी से खास बातचीत की.
'लंच बॉक्स' में किरदार की कई छोटी-छोटी बारीकियां थीं. स्टेपलर उठाने से लेकर ट्रेन में सफ़र, घर का अकेलापन और टिफ़िन खाने तक के दृश्य बेहद बारीकी से पेश किए गए हैं.
'लंच बॅाक्स' में रोज़मर्रा की छोटी-छोटी आदतों का अभिनय करने वाले इरफ़ान ने अपने आदर्श के बारे में बताया. वे कहते हैं, "यह किरदार करते समय मैं अपने मामा से बहुत ज़्यादा प्रेरित था. मामू मंज़ूर अहमद सुबह सात बजे बस लेकर स्टेशन जाते, ट्रेन पकड़ते, ट्रेन से फिर चर्चगेट जाते, दफ्तर पहुंचने के लिए वहां से फिर एक और ट्रेन लेते. फ़िल्म में मैंने अपने मामा के रोज़ शाम घर लौटने के बाद के हावभाव याद कर उन्हें किरदार में ढालने की कोशिश की."

'यूनिवर्सल लैंग्वेज'

इरफ़ान खान, लंच बॉक्स, फ़िल्म, इंटरव्यू, बॉलीवुड
फ़िल्म 'पानसिंह तोमर' के बाद अभिनेता इरफ़ान ख़ान ने फ़िल्म जगत में नई छवि हासिल की.
'लंच बॅाक्स' के साथ करन जौहर, अनुराग कश्यप और सिद्धार्थ राय कपूर जैसे बड़े नाम जुड़ने पर इरफ़ान कहते हैं, "फ़िल्म बनाने के बाद हमें इसे बेचने के लिए खरीददार ढूंढने की ज़रूरत नहीं पड़ी. फ़िल्म बहुत तेज़ी से दुनिया भर में बिक चुकी है. फिल्म में यूनीवर्सल लैंग्वेज होने से पूरी दुनिया में लोग इसके साथ जुड़ रहे हैं."
इरफ़ान की फ़िल्म 'लंच बॅाक्स' प्रतिष्ठित कान फ़िल्म महोत्सव समेत पूरी दुनिया में वाहवाही बटोर चुकी है.
"लोगों को कुछ नया देने के लिए हर बार नई इमेज कायम करना मेरे लिए बहुत ज़रूरी है. मुझे इसमें मज़ा आता है."
इरफ़ान ख़ान, अभिनेता
उन्होंने कहा, "मैं इस दुनिया में चीज़ों को चैलेंज करने आया हूं. ख़ुद को भी चैलेंज करता रहूंगा. साथ में कुछ परिभाषाएं भी बदलें, तो बढ़िया."

'पहचान'

'लंच बॅाक्स' को मिल रही तारीफ़ के बारे में फिल्म समीक्षक अरनव बनर्जी कहते हैं, " भारत में जो हिंदी फ़िल्में बनती रही हैं, वे असल में भारत का चित्रण नहीं करतीं. हिंदी में फ़ैंटेसी फिल्में ज़्यादा बनती हैं ."
'लंच बॅाक्स' जैसी फ़िल्म की कामयाबी के बारे में उनका कहना है, "भारत में ऐसी फ़िल्में बहुत कम बनी हैं और जो बनी भी हैं उन्हें भारत से बाहर पहचान नहीं मिल पाई लेकिन मार्केटिंग और इंटरनेट के इस दौर में फ़िल्म निर्माताओं के प्रयास से 'लंच बॅाक्स' सफल रही. यूनीवर्सल कहानी होने की वजह से दर्शक आसानी से इससे जुड़ पाता है. "
अरनव के मुताबिक 'लंच बॅाक्स' की सफलता से ऐसी फ़िल्मों का बाज़ार बढ़ेगा.
प्रसिद्ध लेखक सलमान रुश्दी ने भी 'लंच बॅाक्स' की तारीफ की है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा है, "मुझे 'लंच बॅाक्स' बहुत अच्छी लगी. टेलुराइड फ़िल्म फ़ेस्टिवल में यह हिट रही है. काफ़ी वक़्त बाद एक बेहतरीन भारतीय फ़िल्म देखने को मिली. मेरे विचार में यह ऑस्कर के लिए कड़ी दावेदार है. "

No comments:

Post a Comment