Sunday 22 September 2013

परमाणु परीक्षण :क्या है बिकनी और एटम बम में संबंध?

परमाणु परीक्षण : क्या है बिकनी और एटम बम में संबंध?

 रविवार, 22 सितंबर, 2013 को 15:35 IST तक के समाचार

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बिकनी और परमाणु परीक्षण स्थल..? आखिरकार इनमें क्या संबंध हो सकता है? शायद ही कभी किसी ने सोचा होगा कि 1940 में किसी परमाणु परीक्षण स्थल का नाम लोग महिलाओं के परिधान से जोड़कर देखेंगे.
बिकनी का नाम प्रशांत महासागर में मौजूद एक द्वीप के नाम से लिया गया है, जो 1940 के दशक में परमाणु बमों के परीक्षण की जगह हुआ करती थी.
यहां तक की "विस्फोटक" छवि पेश करने के लिए ज़िम्मेदार यह परिधान पहने महिलाओं को "बॉम्बशेल" की उपाधि दी जानी लगी.
फ्रांस के एक मैकेनिकल इंजीनियर से बिकनी डिजायनर बने लुई रियर्ड को अगर इस परिधान के आज के अवतार का गॉडफ़ादर कहें तो कुछ ग़लत न होगा.
मगर वस्त्र के बतौर बिकनी की यह दिलचस्प कहानी तब शुरू हुई, जब रियर्ड को पेरिस में अपना अंत:वस्त्रों (लॉन्जेरी) का व्यवसाय संभालना पड़ा.
जहां उनकी प्रतिस्पर्धा फ़ैशन डिजायनर जैक्यूस हेम से थी. यह प्रतियोगिता थी सेंट ट्रॉपेज के समुद्र तटों पर धूप सेंकती युवतियों के लिए दुनिया का सबसे छोटा टू-पीस वस्त्र तैयार करने की.

बिकनी की शुरुआत

हालांकि माना जाता है कि सबसे पहले पहने जाने योग्य टू-पीस परिधान स्विमवियर डिज़ायनर कार्ल जेंटजेन ने 1913 में तैयार किया था.
इसके बाद रियर्ड ने कम से कम कपड़े का उपयोग और आकार छोटा करते हुए टू-पीस तैयार करने के लिए अपने तकनीकी कौशल का इस्तेमाल किया.
रियर्ड ने 1946 में स्ट्रिंग बिकनी पेश की. इसमें चार तिकोनों का इस्तेमाल किया गया था, जिन्हें तनियों के ज़रिए एक-दूसरे से जोड़ा गया था.
बिकनी
लोगों के सामने अपना विस्फोटक परिधान पेश करने के लिए उन्होंने पेरिस के जुआघर की एक नग्न मॉडल को नियुक्त किया. हालांकि यह कदम उस वक़्त के सांस्कृतिक माहौल के लिए झटका ज़रूर था.
यह पहला समय था जब बिकनी को नाभि के नीचे पहना जाना था. रियर्ड द्वारा तैयार यह छोटा सा परिधान दशकों से चल रहे परंपरागत रूप से समुद्र तटों पर पहने जाने वाले ट्यूनिक और ब्लूमर्स से एकदम उलट था.
दूसरी ओर, नई बिकनी की मार्केटिंग में लगे लोगों ने इसके विज्ञापन का अनोखा तरीका खोजा. उन्होंने दावा किया कि टू-पीस स्विमसूट तब तक प्रामाणिक बिकनी नहीं कही जा सकती, जब तक उसे "वेडिंग रिंग" के आरपार न किया जा सके.
यानी इसके छोटे से छोटे रूप को पेश करने की मशक्कत होने लगी.

गुलामी से मुक्ति

हालांकि यह बिकनी चौथी सदी में सिसली के एक रोमन विला में बिकनी गर्ल्स के नाम से मिली मोज़ेक से काफी लंबी थी. इसमें युवतियां टू-पीस पहने मौजमस्ती करती दिखाई गई हैं.
यही नहीं, चमड़े की बनी होने की वजह से काफ़ी भारी भी हुआ करती थी, जो पानी के लिए कुछ ख़ास अच्छी नहीं रहती थीं, लेकिन यहां मसला उनके भारी या हल्के होने का नहीं था.
रोमन सम्राट मैक्समिलियन की रुचि तो युवतियों को उस रूप में देखने में ज़्यादा हुआ करती थी.
बिकनी
आज भी देखें तो अलग-अलग कपड़ों से डिज़ायन बिकनी तैयार करते समय इस बात को प्रमुखता से ध्यान में रखा जाता है.
एक ओर, उदारता और आत्मविश्वास की प्रतीक माने जाने की वजह से बिकनी के डिज़ायन में बदलाव को महिलाओं की गुलामी से मुक्ति के रूप में देखा जाता है.
वहीं, फिल्मी जगत में इसके इस्तेमाल से इससे जुड़े क़िस्सों को और बढ़ावा मिला. जब 1956 में फ्रेच फिल्म एंड गॉड क्रिएटेड वूमन में ब्रिज्रेट बारडोट के सफ़ेद बिकनी में उत्तेजक दृश्य देखने को मिले.
इसे बाद में एंड्रेस ने 61,500 डॉलर में नीलाम किया.
बॉन्ड गर्ल उर्सुला एंड्रेस भी आर्मी नाइफ़ बेल्ट में समुद्र से निकलती नजर आईं. बाद में इसी दृश्य को डाय अनदर डे में हेल बैरी पर भी फ़िल्माया गया.
समय के साथ-साथ बिकनी में भी काफी बदलाव देखने को मिला है. आज आप मोनो-बिकनी देख सकते हैं, जिसमें बिकनी का केवल ऊपरी हिस्सा ही होता है. हाफ़-किनी भी ऐसा ही एक रूप है.

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